आखिर मैं ही क्यों ? सवाल उठते हैं पर जवाब ढूंढे कौन ? चलिए कुछ जवाब समय के पहिए से ही माँगा जाए!

    (रेशमा ख़ातून):१७ वीं शताब्दी में यूरोपिय मुल्क में निरंकुश राजा तक जनता अपनी बात पहुंचाना चाहती थी ! इसलिए अधिक संख्या में इकट्ठे होकर सभी राज महल की ओर जाने लगे ! राजा ने समझा जनता ने राज द्रोह कर दिया है और इस डर से सिपाहियों को हुक्म दिया कि सबको मार दो ! सिपाहियों ने सबको मार गिराया !
    सन् १९१९ में जब जलियांवाला बाग़ में बहुत सारे लोग इकट्ठे हुए तो अंग्रेजों ने किसी आशंकित डर से उन सभी को मारने का हुक्म दिया और सिपाहियों ने उन सभी निहत्थों को मार डाला !



    प्रश्न ये है कि किसी आशंका के मद्देनज़र लोगों को मौत के घाट उतारना तो मानवियता और शांति पर कुठारा घात ही था !
    अंग्रेजों की भ्रष्ट बुद्धि का ये नमुना भर था , आगे चलकर उन्होंने एक नीति का निर्माण किया , जिसमें वो ख़ुद पिछे रहकर सारा संचालन कर रहे थे , और यह नीति थी ” फूट डालो और राज करो ” की नीति !
    इसी नीति ने उन्हें भारत जैसे विशाल और मानव शक्ति से सम्पन्न देश पर लम्बे समय तक राज करने का सुख भुगवाया !
    एक कहावत है ” अंग्रेज़ चले गए इनको छोड़ गए ” !
    अंग्रेज़ों की भ्रष्ट बुद्धि से उपजा ‘ फूट डालो और राज करो का बीज ‘ कई लोगों के मन में रोपित हो गया , वे लोग इस नीति में अपना स्वयं का फ़ायदा देखने लगे और इस बीज को देश के अन्य लोगों में रोपित करने का हर समय प्रयास करने लगे और अब भी करते रहते हैं !

    बीते दिनों यू°पी° के कासगंज में निकाला तो तिरंगा यात्रा गया था , जिसमें तिरंगे का कहीं अता पता नहीं था , भड़काने वाली प्रक्रिया को अंजाम दिया गया और दंगों की आग ने बड़ा भयानक रूप धारण कर जीते जागते इंसानों को जिसमें किसी की बहन की अगले महीने शादी थी ,किसी के इम्तहान का रिज़ल्ट आने वाला था , किसी के घर नन्हीं किलकारियां गुंजने वालीं थीं….सब को शांत कर दिया ! ये कुछ और नहीं फूट डालो और राज करो की नीतियों का ही अनुसरण है !
    कितने घरों की होली और ईद सूनी हो गई !
    कुछ मुट्ठी भर लोग…….

    कुछ मुट्ठी भर लोग अंग्रेज़ सिपाहियों की तरह उनकी बातों में आकर आज्ञा का पालन और हुक्म अदुली कर बैठते हैं !
    लेकिन नफ़रत का यह बीज इतना बेकार और सड़ा हुआ है कि ये पनपता नहीं , शुक्र है ये केवल बीज रूप में ही रहता है , इसकी कोंपलें नहीं निकलतीं , केवल दिखावे के रूप में ही ये रोपित है और ये कभी फलित हो भी नहीं सकता , क्योंकि हमारी भारतिय संस्‍कृति , हमारी हवा और हमारी नदियों का जल इतना वरदान भरा है कि प्रदूषित होकर भी हमारे मन को दूषित होने से बचाता है !

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