बसंती हवा – केदारनाथ अग्रवाल| Basanti Hawa
हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी -अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला। नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ, मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा,न इच्छा किसी की, न आशा किसी की,न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ।…