RTE (right to education) condition in darbhanga

मुफ्त नामांकन
अनुपालन करने वाले स्कूल :110
अनुपालन नहीं करनेवाले स्कूल: 42
अल्पसंख्यक स्कूल: 10
कुल स्कूल 162

दरभंगा: शिक्षा अधिकार कानून सूबे में लागू हुए आठ वर्ष बीत गए। बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत हर निजी स्कूलों में अपने यहां की प्रथम कक्षा में उपलब्ध कुल सीट के 25 प्रतिशत पर गरीब एवं अभिवंचित वर्ग के बच्चों का मुफ्त नामांकन लेना था। लेकिन कानून लागू होने के आरंभ में तो संबंधित स्कूल के पोषक क्षेत्र के अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन पर दबाव बनाया। कुछ सफल हुए और कुछ गरीब लोग अपने बच्चों का हाई प्रोफाइल स्कूलों में दाखिला दिलाने का सपना मन में ही दबाए वापस आ गए। जिन लोगों ने दौड़ धूप करके स्कूल प्रबंधन की थोपी सभी शर्तों को पूरा करने के बाद अपने बच्चों का नामांकन करा भी लिया वह भी दूसरे तथा तीसरे शैक्षणिक सत्र आते आते स्वयं को ठगा हुआ महसूस करने लगे। इसका कारण था कि दूसरी कक्षा में ही स्कूल प्रबंधन बच्चों को मासिक शिक्षण शुल्क का बिल थमाने लगे। तीसरे कक्षा में तो साफ कह दिया कि आपके बच्चे के शिक्षण शुल्क का भुगतान सरकार हमें नही कर रही है। इसलिए आप स्वयं बच्चे के शुल्क का भुगतान करे या फिर अपने बच्चों को किसी दूसरे स्कूल में ले जाएं। स्कूल प्रबंधन के दबाव के आगे कुछ अभिभावक तो किसी प्रकार अपनी औकात से अधिक शिक्षण शुल्क की व्यवस्था कर ली लेकिन कुछ लोगों ने अपने बच्चे वापस बुला लिए। अभिभावकों ने कहा कि मात्र शिक्षण शुल्क नही लिया गया था।स्कूल ड्रेस, किताब, टाइ, बेल्ट, बैग, जूते और मोजे के अलावा प्रतिदिन सम्पन्न वर्ग के बच्चों की भांति टिफिन बॉक्स देना हमारे बस में नही था। जिन स्कूलों में मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत नामांकन लिया भी तो उसमें पक्षपात कर दिया। अपने स्कूल में कार्यरत चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों और दाइयों के बच्चों को अभिवंचित वर्ग में शामिल कर कानून का भी पालन कर लिया और अपने कर्मचायिों की भी सहानुभूति बटोर ली कि उनके बच्चों को भी समृद्ध वर्ग के बच्चों के साथ उनका प्रबंधन पढ़ा रहा है। इसके विपरीत कुछ स्कूलों ने तो कभी इस कानून को तवज्जों ही नही दिया। जिसको मन में आया उसका शुल्क माफ कर दिया और कहा कि देखिए हम भी गरीब बच्चों को मुफ्त में नामांकन ले रहे हैं। सबसे बड़ा पहलू यह है कि किस स्कूल की प्रथम कक्षा में कितनी सीट है इसका अधिकृत आंकड़ा कहीं उपलब्ध नही है। हर निजी स्कूल में एक कक्षा में कई सेक्शन है। कहीं 20 बच्चों पर सेक्शन होता है तो कही 40 बच्चों पर। स्कूल प्रबंधन प्रथम कक्षा में 100 डेढ़ सौ नामांकन लेते है। लेकिन जब गरीब बच्चों के नामांकन होने की बारी आती है तब मात्र 25 सीट के 25 प्रतिशत पर चर्चा होती है। उपलब्ध सीटों को लेकर ना जिला शिक्षा कार्यालय में कोई आंकड़ा है और ना ही किसी स्कूल के सूचनापट पर इसे दर्शाया जाता है। 1अभिभावकों का यह भी कहना है कि विभिन्न विभागों के आला पदाधिकारी अपने बच्चों को इन निजी स्कूलों में पढाते है। हम अगर शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अपने बच्चों का अधिकार मांगने जाते है तो स्कूल के निदेशक व प्राचार्य पदाधिकारियों की धौंस दिखाते हैं। कई स्कूलों में तो प्रबंधन न 7 फीट के लम्बे चौड़े बाउंसर्स रख लिए है। ऐसे बाउंसर प्राचार्य के कार्यालय के प्रवेश द्वार पर खड़े रहते हैं। पूछते हैं कि प्राचार्य से मिलने का उद्देश्य क्या है। मुफ्त नामांकन का उद्देश्य सुनते ही वापस लौटा देते हैं कि अभी मैडम मीटिंग कर रही हैं। बाद में आना। 1बीपीएल नहीं तो नामांकन नहीं : डीएमसीएच परिसर से सटे एक प्रतिष्ठित स्कूल में अपने बच्चे के नामांकन के लिए गया था। प्राचार्या ने बड़े मीठे स्वर में कानून समझाया। कहा कि बीपीएल कार्ड है। उत्तर दिया कि नही है। प्राचार्या ने कहा कि सरकार का आदेश है कि केवल बीपीएलधारियों के बच्चों को ही नामांकन दिया जाए। एक और अभिभावक ने कहा कि मेरा नाम जशाई पासवान है। मेरा घर दोनार के पास है। मुङो प्राचार्या ने कहा कि चूंकि आपका घर एक किमी से अधिक दूर है इसलिए यहां आपके बच्चे का मुफ्त नामांकन नहीं होगा। आप अपने मोहल्ले के स्कूल में बच्चे के नामांकन के लिए प्रयास कीजिए। 150 बच्चों का हुआ नामांकन : दरभंगा सेंट्रल स्कूल लहेरियासराय में विगत शिक्षा सत्र में 50 निर्धन बच्चों का नामांकन किया गया था। सरकार के 25 प्रतिशत की अनिवार्यता यहां कोई मायने नही रखती है। चालू शिक्षा सत्र में सौ गरीब बच्चों को निशुल्क नामांकन एवं शिक्षा देने की घोषणा प्राचार्य विजय कांत झा ने की है। श्री झा ने कहा कि अमीर एवं गरीब बच्चे आपस में भेदभाव न करें इसके लिए शिक्षक सभी बच्चों से एक समान व्यवहार करते हैं। अति गरीब दो बच्चों का चयन करके कॉपी, पेंसिल भी दी जाती है। 1नामांकन में भेदभाव नहीं : माउंट समर स्कूल में आरटीई के तहत गरीब बच्चों का नामांकन किया जाता है। पिछले सत्र में प्रथम कक्षा में 37 बच्चों ने नामांकन लिया था। इसमें 14 बच्चों को मुफ्त नामांकन एवं शिक्षा का लाभ दिया गया था। बच्चे कक्षा में भेदभाव न करें इसके लिए स्कूल निदेशक अश्विनी कुमार ने कहा कि विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को लंच के समय एक साथ बैठाया जाता है। एक दो निर्धन बच्चों को स्टेशनरी भी दी जाती है।

लक्ष्य से अधिक लिया नामांकन

मुंशी प्रेमचंद पब्लिक इंगलिश स्कूल वाटर वेज लहेरियासराय के प्राचार्य महेश कुमार ने कहा कि 225 प्रतिशत गरीब बच्चों के नामांकन के लक्ष्य से भी अधिक बच्चे पढ़ते हैं। नामांकन के समय अभिभावकों को केवल बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र या आधार कार्ड की छाया प्रति और बीपीएल कार्ड की प्रति देनी होती है। विगत शिक्षा सत्र में बच्चों का नामांकन किया गया था। गरीब बच्चे अमीर सहपाठियों के संग बिना भेदभाव के रह इसके लिए अभिभावकों को साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने की ताकीद की जाती है। स्कूल के वातावरण में सभी बच्चों के साथ एक समान व्यवहार किया जाता है। फिर भी बच्चे हीन भावना के शिकार हो जाते है।

अव्यवस्था

सपना बना निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का नामांकन कराना

बीपीएल तो कहीं पोषक क्षेत्र बन रहा बहाना, स्वयं ठगा महसूस कर रहे लोग

दूसरी कक्षा में ही स्कूल प्रबंधन बच्चों को थमाने लगे फीस का बिल.

कुल सीट के 25 प्रतिशत पर गरीब के बच्चों का मुफ्त में लेना था नामांकन

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