पटना बिहार :-बिहार में आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति में एक तिकड़ी बनती हुई नजर आ रही है. या यूं कहें कि आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले बिहार की राजनीति में नहीं राजनीतिक जमीन तलाशने का सिलसिला शुरु हो चुका है. साथी बिहार में एनडीए के सहयोगी दल भाजपा के साथ रहते प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गए हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा लोजपा के अध्यक्ष रामविलास पासवान के बीच लगातार हो रही मुलाकात रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा के बीच बढ़ती नजदीकियां बिहार में बड़े राजनीतिक उलटफेर की ओर इशारा कर रही है.
नीतीश की दो टूक, क्या हैं मायने
पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दो टूक कि कुछ भी हो, सांप्रदायिक ताकतों से कभी समझौता नहीं कहेंगे। साथी बिहार के विशेष राज्य के दर्जे को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ सख्त रवैया को भी राजनीति के जानकार भाजपा के लिए चेतावनी के रूप में देख रहे हैं.
अंबेडकर जयंती पर मिलेंगे तीनों नेता
14 अप्रैल अंबेडकर जयंती पर एक आयोजित कार्यक्रम में तीनों नेता एक साथ मंच साझा कर सकते हैं जानकारों की माने तो इसे तीनों नेताओं का लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश भी हो सकती है.
तीनों नेताओं का बयान 2019 लोकसभा चुनाव एनडीए के साथ ही रहेंगे.
रविवार को लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच लगभग डेढ़ घंटे की मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए रामविलास पासवान ने कहा कि वह तीनों NDA के साथ हैं और रहेंगे. रामविलास पासवान ने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि देश में 2014 लोकसभा चुनाव जैसा माहौल फिर से बनाया जाए.ऐसे में सवाल उठता है कि एनडीए के अंदर नीतीश और पासवान की गुटबंदी के सियासी मायने क्या हैं????
NDA में बनाए रखनी है अपनी धाक
जानकारों के अनुसार एनडीए के अंदर पासवान नीतीश और कुशवाहा की गुटबंदी का मुख्य उद्देश्य 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा पर दबाव बनाने की है. साथ ही तीनों नेता NDA में अपनी उपस्थिति और मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं.
बिहार मे चलती है जातिगत राजनीति
बिहार की राजनीति में आज भी जातिगत राजनीति हावी है .उसी का नतीजा था कि पिछले विधानसभा चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इस नजरिए से भी लालू के जातिगत राजनीति के व्यू को तोड़ने के लिए NDA घटक दलों को एक नई जातिगत राजनीति समीकरण बनाने की जरूरत है.इसी आधार पर नीतीश, पासवान और कुशवाहा के साथ मिल जाने से जो समीकरण बन रहा है उस हिसाब से गैर-यादव ओबीसी और महादलितों को मिलाकर 38 प्रतिशत का वोटबैंक बनता है।