पटना बिहार मिथिलांचल न्यूज़ :-संविधान निर्माता डाॅ भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर 14 अप्रैल को पटना के बापू सभागार में रामविलास पासवान, नीतीश कुमार,सुशील मोदी और उपेंद्र कुशवाहा एक मंच पर होंगे. दलित सेना और लोजपा द्वारा आयोजित अंबेडकर जयंती समारोह में सीएम नीतीश कुमार ‘पासवान’जाति को लेकर बड़ी घोषणा भी कर सकते हैं.
14 अप्रैल को पटना के बापू सभागार में कई सालों बाद रामविलास पासवान और नीतीश कुमार एक मंच पर होंगे. उपेंद्र कुशवाहा भी नेताओं के साथ मंच साझा कर खुद को लेकर तमाम सियासी अटकलों पर विराम लगाएंगे, वहीं बिहार में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी की मौजूदगी एनडीए की एकजुटता का अहसास कराने वाली मुकम्मल तस्वीर मुहैया कराएगी.
मंच से ‘पासवान’ जाति को महादलितों जैसी सरकारी सुविधाएं और सरकारी नौकरियों में कुछ प्रावधानों की घोषणाएं हो सकती है. पारंपरिक तौर पर पासवान जाति के लोगों की चौकीदार में बहाली होती रही है और अनुकंपा के प्रावधान लागू करने के साथ थानों में दलित अधिकारियों की तैनाती की उनकी मांग रही है.नीतीश कुमार खुद के प्रति पासवान जाति के पूर्वाग्रह को खत्म कर नजदीकियां और बढ़ाना चाहते हैं लिहाजा कोई बड़ी घोषणा भी कर सकते हैं.
केंद्रीय मंत्री और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने कहा मुख्यधारा से अलग लोगों के लिए कानून बने तो इसमें आपत्ति क्या है? एनडीए एकजुट है. पीएम ने भी कहा है और हम भी कहते हैं कि जबतक जिंदा हैं कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता है. विपक्ष के लोग बेकार में कानाफूसी करते रहते हैं कि आरक्षण खत्म हो जाएगा.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमारी सरकार एससी-एसटी एक्ट को और मजबूत करेगी. प्रोन्नति में आरक्षण, निजी क्षेत्र में आरक्षण, भारतीय न्यायिक सेवा का गठन भी हमारी मांग है. अंबेडकर जयंती के मौके पर पासवान जाति को लेकर किसी घोषणा के सवाल पर उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या घोषणा करेंगे ये हम कैसे बोल सकते हैं?
उधर, जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि दलित सेना के बैनर के तले अंबेडकर जयंती मनाया जा रहा है. रामविलास पासवान कई सालों से आयोजन करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि एनडीए एकजुट है. कुछ मुद्दों पर राय जरूर अलग हो जाती है.
एनडीए की एकजुटता की इस पटकथा को तैयार होने में काफी वक्त लगा. इस बीच कई खट्टे-मीठे पल भी आए. मौजूदा दौर की सियासत का ये फ्रेम बरकरार रहें इसकी भी कोई खास गारंटी नहीं लेकिन अभी बीजेपी और उसके सभी सहयोगी लोकसभा चुनावों को लेकर एकजुट हो गए हैं.
पिछले कुछ महीनों में एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं रहा है. एनडीए शिवसेना और टीडीपी के झटकों से उबर नहीं पाई थी कि रामविलास पासवान की 4 सालों की नाराजगी फूट पड़ी और उनकी बयानों में तल्खी दिखने लगी. फिर क्या था भाजपा के दूत केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और भूपेंद्र यादव पासवान की नाराजगी का सबब जानने पहुंच गए और फिर प्रधानमंत्री मोदी के साथ पासवान की दलित-आदिवासी सांसदों के साथ मुलाकात के मौके बनाए गए और इस तरह पासवान के गिले-शिकवे दूर हो गए.
इधर, बिहार में हिंसा की घटनाओं ने जेडीयू और भाजपा नेताओं के बीच जो तल्खियां पैदा कर दी. हिंसक आग की तपिश एनडीए गठबंधन तक महसूस होने लगी, जेडीयू और बीजेपी के नेताओं के बयान विरोधियों के बजाए एक-दूसरे को झुलसाने लगें. आखिरकार अर्जित शाश्वत का गिरफ्तार होना दोनों दलों के बीच सीजफायर कायम किया.
सवाल है कि सहयोगी बीजेपी से किस बात को लेकर सशंकित हैं या अटकलों को हवा देते हैं. दरअसल, बीजेपी के सभी सहयोगियों को इस बात का अहसास है कि मोदी-शाह की बीजेपी अटल और आडवाणी की बीजेपी से काफी अलग है. बिहार में सहयोगियों को बीजेपी के नेताओं का विस्तार को लेकर आक्रामक रवैया भी रास नहीं आ रहा है, लेकिन सहयोगियों को मौजूदा दौर में विकल्पहीनता की सियासत का भी बखूबी अहसास है. ऐसे में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान को एक दूसरे की जरुरत है.
नीतीश कुमार ने एनडीए के बदले हालात को ही भांप कर पशुपति कुमार पारस को सदन से बाहर होने के बावजूद मंत्रिपरिषद् में जगह देकर पासवान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो रामविलास पासवान और चिराग भी नीतीश के हर सियासत पर साथ नजर आ रहे हैं. पासवान का अब बिहार दौरा भी नीतीश से मुलाकातों के बगैर खत्म नहीं होता. खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे उपेंद्र कुशवाहा को भी पासवान और नीतीश ने साथ ले लिया है.
सियासत में कोई भी चीज टिकाऊ नहीं होती है लेकिन तीसरे मोर्चे को लेकर असमंजस और कांग्रेस की इससे दूरी ने फिलहाल एनडीए को टीडीपी के झटकों के बाद अपने बिखराव थामने का मौका दे दिया है. पटना का बापू सभागार 14 अप्रैल को बिहार में वो तस्वीर पेश करेगा जो लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के आत्मविश्वास और आंखों की चमक में इजाफा करेगा।
आशीष श्रीवास्तव की विशेष रिपोर्ट….