darbhanga:अामान परिवर्तन के कार्य की हुई शुरुआत

    मनीगाछी | सकरी-झंझारपुर-लौकहाबाजार रेलखंड के आमान परिवर्तन की चिर प्रतीक्षित मांग को रेलवे कब पूरा करेगी। ये लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ था। भारत में रेल के आगमन के महज 20 वर्ष के बाद ही तिरहुत रेलवे ने अपनी यात्रा शुरू कर दी थी। इसी कड़ी में सन् 1876 में तत्कालीन जनप्रिय महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने झंझारपुर को रेल से पूरे देश से जोड़ दिया था। देश की शान और मिथिला की पहचान तिरहुत रेलवे तो अब नहीं रहा लेकिन उसकी लोहे की पटरियां और पुल लोगों को अपनी मंजिल पर पहुंचा रहा था। झंझारपुर से पहले बहने वाली कमला पर पुल भी महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने ही बनवाया था। उस समय इस पुल को बनाना बहुत ही चुनौती भरा काम था लेकिन महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने इस कठिन कार्य का बीड़ा उठाया और उन्होंने रेल सह सड़क पुल बनवाया जो एशिया में अपनी तरह का इकलौता पुल है। अपने जनता को उन्होंने रेल का तोहफा ही नहीं दिया बल्कि एक नया द्वार खोल दिया। तिरहुत रेलवे के द्वारा ही मिथिला के दोनों भाग एक-दूसरे से कोसी पुल द्वारा जुड़े थे। लेकिन 1934 के भूकंप में मिथिला के दोनों भागों को जोड़ने वाली कोसी के पुल के क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद मिथिला को आज तक रेलवे द्वारा पुन जोड़ा नहीं जा सका। हाल के वर्षों में सकरी से आगे बड़ी रेल लाइन के लिए रेल यात्री अरसे से प्रतीक्षा में थे। सकरी-झंझारपुर-लौकहा बाजार रेलखंड का आमान परिवर्तन लोगों को देश के सभी जगह से बड़ी लाइन से जरूर जोड़ देगा।

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