पॉलिटिकल किस्से मे आज बात हिंदुस्तान की सियासत का एक बड़ा नाम अटल बिहारी वाजपेयी हम लोग वाजपेई के कई किस्से सुनते हैं और क्योंकि खुद कवि आदमी थे विनोदी स्वभाव के आदमी थे इसलिए मजा भी आता है सुनने में।
मजे की एक वजह यह भी है कि वाजपेयी संसदीय परंपराओं वाले व्यक्ति थे लोक सभा में शांत रहना कभी प्रधानमंत्री रहते हुए कोरम की घंटी सुनते वह घंटी जो स्पीकर का दफ्तर तब बजता है जब सदन में पर्याप्त संख्या में सदस्य मौजूद ना हो तो खुद ही दौड़ लगा जाते थे।
आज हम बात करने जा रहे है अटल बिहारी वाजपेयी की पहले राजनैतिक हार के बारे में। बात करते हैं 1953 से जी 1952 में देश के पहले चुनाव हुए 1953 में अटल बिहारी वाजपेयी का पहला चुनाव हुआ अभी कुछ बरस पहले ही तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जन संघ में भेजे गए थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सचिव का उनको दायित्व मिला था श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु हुई थी पर कई लोग कहते हैं कि उनकी हत्या हुई।
बैरल बात 1953 का साल पंडित नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित लखनऊ से सांसद लेकिन नेहरू जी ने बहन जी को यूएन में भारत का राजदूत बनाकर भेज दिया इसके चलते लखनऊ में उपचुनाव हुए यहां से जनसंघ के टिकट पर मैदान में उतरे 28 साल के पत्रकार अटल बिहारी वाजपेई तीसरे नंबर पर रहे चुनाव जीता कांग्रेस के S.R. नेहरू ने।
1957 में अटल बिहारी वाजपेयी और भी तैयारी के साथ दूसरे और 3 सीटों पर उतरे क्योंकि उस वक्त जनसंघ चलाने वाले दीनदयाल उपाध्याय यह चाहते थे कि अच्छा भाषण देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी बस किसी तरह से लोकसभा में पहुंच जाएं क्योंकि जब वह सदन में बोलेंगे तो पूरे देश का मीडिया नोटिस लेगा और इससे जनसंघ के प्रचार प्रसार में मदद मिलेगी।
इसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी से 3 लोकसभा सीटों पर पर्चा दाखिल करवाया गया ये तीनो लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश में थी और लखनऊ ,मथुरा और बलराम पुर, मथुरा में अटल बिहारी वाजपेई बुरी तरह चित हुए जमानत जपत हो गई। यहां से चुनाव जीते राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने। लख्ननऊ में अटल बिहारी वाजपेयी ने जोरदार टक्कर दी लेकिन चुनाव हार गए दूसरे नंबर रहे यहां से चुनाव जीता कांग्रेस के बनर्जी ने लेकिन बलरामपुर यहां से अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीतने में सफल रहे उन्होंने कांग्रेस के हैदर साहब को संतोषजनक अंतर से हराया।
लेकिन ये कैसे मुमकिन हुआ बलरामपुर गोंडा जिले से निकाल कर बनाई गई एक नई लोक सभा। जहां पर करपात्री जी महाराज का बड़ा राशूक़ था राम राज्य परिषद बनाई थी उन्होंने। करपात्री जी महाराज एक संत जो हाथ में जितना भोजन आ जाता था उतना ही करतये थे। भोजन करेंगे दिन में एक बार ही राम मंदिर के आंदोलन में बहुत सक्रिय रहे और जो राजा थे वह करपात्री महाराज के बड़े शिष्य थे इन सब वजहों से अटल बिहारी वाजपेयी को बलरामपुर का चुनाव जीतने में मदद हासिल हुई .
पॉलिटिकल किस्से के इस भाग मे इतना ही अगले किस्से मे बात कैसे नेहरू जी ने अटल बिहारी वाजपेयी को संसद जाने से रोका।