पाकिस्तान का नाम सुनतये ही तस्वीर दिलो-दिमाग में बनती है। एक ऐसा देश जो कई मोर्चों पर विफल है। और अपने ही लोगों के शोषण पर पूरा यकीन रखता है यही कारण है कि पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों के साथ भेदभाव बहुत ज्यादा है। और ऐसे ही गैर मुस्लिमों में शामिल है अहमदिया मुसलमान जिन्हें पाकिस्तानी मुस्लिम मुसलमान नहीं मानते।
लेकिन इससे जुड़े एक तथ्य यह भी है कि इसी अहमदिया समुदाय से आते हैं पाकिस्तान के आर्मी चीफ बाजवा। तो सवाल है कि क्या बाजवा पहले गैर मुस्लिम पाकिस्तान के आर्मी चीफ है और ऐसा क्या खास है कि लोग बाजवा का बहुत ज्यादा विरोध नहीं कर पा रहे हैं। बीते साल में पाकिस्तान के पेशावर हाईकोर्ट मे दायर याचिका में बाजवा की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी थी। कि वह कांडानी समुदाय से आते हैं पाकिस्तान में कांडानी समुदाय मुसलमान के तौर पर जाने जाते हैं और मुख्यधारा के लोग इन्हे गैर मुस्लिम मानती है।
पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक एक गैर मुस्लिम आर्मी चीफ नहीं हो सकता। अगस्त महीने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बाजवा का कार्यकाल 3 साल के लिए बढ़ा दिया था। नवंबर 2016 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जब बाजवा को सेना प्रमुख नियुक्त किया था उस वक्त भी बाजवा की धार्मिक पहचान को लेकर विवाद हुआ। जमात अहले हदीस के शिया और सुन्नी मौलाना ने बाजवा की नियुक्ति का जमकर विरोध किया। उनका तर्क था कि बाजवा के रिश्तेदार अहमदिया संप्रदाय साई ताल्लुक रखतये है।
अहमदिया संप्रदाय के लोगों को अपनी मान्यताओं और परंपराओं की वजह से पाकिस्तान में लंबे समय से उत्पीड़न और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है। पाकिस्तान मुसलमान इन्हे मुसलमान नहीं मानता उनको कुरान पढ़ने ईद मनाने और यहां तक कि अपने रिश्तेदारों को दफनाने की इजाजत नहीं देता।
1986 मे सरकार ने एक आदेश जारी करकेअहमदिया मुसलमान और उनके मस्जिद में प्रवेश करने पर भी पाबंदी लगा दी थी। ऐसे में सवाल है कि क्या वजह है कि आज भी कि इमरान और उनकी सरकार इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। और सवाल तो यह भी है कि अगर पाकिस्तानी आर्मी चीफ गैर मुसलमान है तो अवि तक अपने समुदाय के ऊपर हो रहे जुल्म को ले क्र चुप क्यों बैठे हैं।