कोरोना वायरस के बाद अमेरिका चीन के कोल्ड वॉर में एक नया चैप्टर और जुड़ गया है हांगकांग में चीन के नए सुरक्षा कानून का मामला अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा है कि हांगकांग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को कमजोर करने के लिए चीन ने कई कदम उठाए हैं और सुरक्षा कानून इस कड़ी का सबसे ताजा उदाहरण है स्पष्ट है कि चीन हांगकांग की स्वायत्तता को खत्म करने में लगा है।
अमरीका हांगकांग के समर्थन में था। दोनों देशों के बीच 2018 में ट्रेड वॉर शुरू हुआ और एक दूसरे के उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया आखिर में हुआ यह कि नए शुल्क ने अमेरिकी परिवार का सालाना खर्चा $800 बढ़ा दिया एक अनुमान के मुताबिक इससे तीन लाख नौकरियां प्रभावित हुई चीन के लोगों की आय पिछले 30 साल में सबसे धीमी गति से बढ़ी हुई। दोनों देशों के बीच कोल्ड वॉर के भविष्य में खतम होने के आसार ना के बराबर है।
क्योंकि चीन सुपर पावर होने की होड़ में है और अमरीका इस तमगे को इतनी आसानी से चीन के हाथ जाने नहीं देगा 1991 में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद अमेरिका को सुपर पावर माना जाता है जानकार चीन को अब भी एमरजीने सुपर पावर ही कहते हैं लेकिन सुपर पावर होता क्या है ?? इसका पैमाना क्या है ?? इसकी अभी तक कोई परिभाषा तो नहीं है पर जानकार कहते हैं कि कोई देश जिसके पास सबसे ज्यादा सैन्य ताकत हो और दुनिया में आर्थिक कूटनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव हो उसी को सुपर पावर कहा है।
सैन्य ताकत की बात करें तो आज की तारीख में सिर्फ अमेरिका ही मिलिट्री सुपर पावर है अमेरिका के पास कितनी ताकत है जो अपने भूभाग से दूर भी जमीन समुद्र हवा में बड़े स्तर पर युद्ध लड़ सकता है और जो किसी के बस की बात नहीं है।
इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक अमेरिका का सैन्य ताकत पर सालाना खर्च 649 बिलीयन डॉलर है पिछले साल से 4.6 फ़ीसदी ज़्यादा। दूसरी सुपर पावर चीन है जिसका सैन्य ताकत पर खर्च $250 है पिछले साल से 5 फ़ीसदी ज्यादा। 24 साल से चीन अपना सैन्य ताकत पर खर्च बड़ा रहा है।
लेकिन अमेरिका के परमाणु हथियारों का जखीरा चीन से ज्यादा है अमेरिका तकनीक के मामले में भी चीन से आगे है जिसमें इंटेलिजेंस बैलिस्टिक मिसाइलें और वॉर पिल्स आते हैं अमेरिका का नेटवर्क मजबूत है एशिया मे आयलिन्स के जरिये और नाटो के जरिए यूरोप में भी। चीन के पास ऐसा नेटवर्क नहीं है .
लेकिन चीन का वन बेल्ट वन रोड का 124 मिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट जो एशिया,अफ्रीका, यूरोप में व्यापार और निवेश की मंशा से शुरू किया गया। उसने अमरीका को नींद से जगाया। चीन ने साउथ चाइना सी में आर्टिफिशियल आइलैंड बना लिए जिससे अमेरिका को खतरा महसूस हुआ उस इलाके से हर साल 5.3 ट्रैलियन डॉलर का व्यापार होता है। संभवतः अमेरिका से आगे बढ़ने के लिए चीन ने व्यापार अर्थव्यवस्था के रास्ते को चुना है.
कम से कम 65 देश और टेरिटरीज है जिन का सबसे बड़ा सप्लायर चीन है। चीन सरकार भी अमरीका को शक की निगाह से देखता है चीन ने खुद को मजबूत करने और अपने विकास में कई साल लगाए हैं चीन भी यह बात महसूस करता है कि अगर कोई चीन के एंबीशंस को रोक सकता है तो वह है अमरीका। चीन के नेता विदेशियों को कहते हैं कि वे मुक्त व्यापार खुले बाजार और ग्लोबलाइजेशन मे विश्वास करते हैं लेकिन चीन के अंदर कुछ और देखने को मिलता है चीन का एजेंडा अपनी कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दबंग बनाने का है और ऐसा दिन लाने का है कि उन्हें किसी तकनीक के लिए अमेरिका पर निर्भर ना होना पड़े।अमरीका और चीन के बीच विवाद ट्रंप आने के बाद से ही शुरू नहीं हुआ यह खाई धीरे-धीरे गहराती चली गई। 2001 में जब चीन ने वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन ज्वाइन किया उसके बाद से अमेरिका को जिन आर्थिक फायदों की उम्मीद थी उसे नहीं मिले .
चीन ने अपनी कंपनी अमेरिका में खोली लेकिन चीनी कंपनियों पर जासूसी और कंप्यूटर हैकिंग के आरोप लगते रहे अमरीकी सरकार का अनुमान है कि चीन ने 4 साल में 1.2 ट्रिलियन डॉलर की बौद्धिक संपदा चोरी की है से पहले ओबामा भी कमेटी ऑन फॉरेन इन्वेस्टमेंट को मजबूत कर रहे थे जिसने चीनी निवेश को लेकर काफी सख्त बनाया गया है . इन दोनों देशों में होर तो है लेकिन दोनों देश एक-दूसरे पर कई मामलों में आज भी निर्भर है तकनीक में ही देख लीजिए अमेरिका के ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस चीन नै असेम्ब्ल होते हैं और चीनी फॉर्म विदेशी सप्लायर पर निर्भर है
10-15 साल का वक्त लगेगा चीन को कंप्यूटर चिप मे आत्मनिर्भर बनने में अमेरिका को सप्लायर शिफ्ट करने में।भविष्य में तकरार और बढ़ेगी क्योंकि अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि चीन उससे बड़ा बने चीन सोचता है कि यह सदी एशिया की है और वो मुख्य भूमिका निभाएगा।