माँ , बहन , पत्नी और बेटी के रूप में महिलाओं का स्थान सर्वोपरि है ! हर समाज और सभी धर्मों में महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान से जीने और रास्तों पर चलने की छूट दी है !
जब किसी की माँ , बहन , पत्नी या बेटी जाने-अनजाने रास्तों पर हों तो किसी को भी ये हक़ नहीं कि उनकी सुरक्षा और आत्मसम्मान को तार-तार कर दे !
महिला किसी के भी घर की हो सकती है , हर घर में हैं , तो क्या कोई भी अपने घर की रौनक को इस तरह बे नूर होते हुए देखना चहेगा ?
सवाल बहुत हैं , पर सवालों के चक्रव्यूह से निकल कर इस घनघोर समस्या का हल निकालना है !
जनता खुले रूप में सड़कों पर आकर मांग कर रही है कि अब हमें पूरी तरह से सुरक्षित वातावरण चाहिए !
इस तरह की मांग कुछ सांस्कृतिक संगठनों ने एक मंच को साझा करके की है !
जुटान , कथांतर , सर्जन , जसम (जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा) ,प्रेरणा, हिरावल , इप्टा , अभियान ,दूसरा शनिवार , जनवादी लेखक संघ द्वारा महिलाओं पर बढ़ती हिंसा के ख़िलाफ़ ” सांस्कृतिक प्रतिरोध ” का आयोजन किया गया ! इसमें एकत्रित सभी बुद्धिजीवियों ने मांग की है कि समाज में जिस तरह का माहौल तैयार हो रहा है और हिंसक बलात्कार की बढ़ती घटनाएँ हो रही हैं इससे हमें निजात चाहिए !
राज्य सरकार के नुमाइंदों और रक्षा करने वाली पुलिस हिंसक बलात्कार के मामलों में संलिप्त पाई गई है और खुले सबूतों के बावजूद उनके बचाव के लिए संघ और सरकार पक्ष के लोग ही खड़े हो गए हैं , जिससे इस देश की किसी भी महिला के साथ बलात्कार की घटनाओं को बढावा ही दिया जा रहा है , जो हमें स्वीकार नहीं ! इस तरह के माहौल से हमारे देश को जल्द से जल्द निजात चाहिए !
इसलिए दोषियों को ना बख़्शा जाए और उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए ! देश में इसके लिये सख्त कानून लागु किए जायें !
रेशमा ख़ातून
की
रिपोर्ट