पटना बिहार मिथिलांचल न्यूज़ :-वाणिज्य कर विभाग अब एक स्तर पर ही विद्युत शुल्क लेगा। अब तक बिक्री के हर चरण पर विद्युत शुल्क लिया जाता है। ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापक सुधार को देखते हुए पुराने विद्युत शुल्क अधिनियम 1948 की कई विसंगतियों को ठीक कर नया बिहार विद्युत शुल्क विधेयक 2018 बनाया गया है। विधानसभा में बुधवार को यह ध्वनि मत से पारित हो गया।
उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि इसके लागू होने के बाद कर प्रशासन, कर के आरोपण, उद्ग्रहण, वसूली एवं भुगतान में सरलता आएगी, जिससे कर विवादों की संख्या कम होगी। एक वित्तीय वर्ष में करीब 300 करोड़ रुपए राजस्व की प्राप्ति के आसार हैं। चालू वित्तीय वर्ष में फरवरी तक 174 करोड़ रुपये वसूल हुए हैं। वर्ष 2012 में बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के विभाजन के बाद विद्युत शुल्क की वसूली के लिए फ्रेंचाइजी कंपनियों की बहाली हुई है, जिसके कारण उत्पादन और उपभोग के बीच के चरणों में वृद्धि हुई है। इसका कुप्रभाव यह पड़ा कि करदेयता के बिंदु पर कर विवादों की संख्या बढ़ गई
नए विधेयक में इस व्यवस्था को समाप्त कर केवल अंतिम चरण में उपभोक्ता से विद्युत शुल्क लेने की व्यवस्था की गई है। उनके मुताबिक, पूर्व की भांति नए अधिनियम में भी विद्युत शुल्क को जीएसटी से बाहर रखने का प्रावधान किया गया है।
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि हाल के वर्षों में विद्युत उत्पादन का क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए भी खोल दिया गया है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड का पांच कंपनियों में विभाजन भी हो चुका है। अब हम सीधे खुले बाजार से बिजली की खरीद कर सकते हैं।
ऐसे में आवश्यक था कि नई जरूरतों के मद्देनजर अधिनियम में बदलाव किए जाएं।नही पड़ेगा लोगों पर कोई अतिरिक्त बोझ।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य पहले ही अपने विद्युत शुल्क अधिनियम में परिवर्तन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस नए विधेयक के पारित होने से जनता पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं आएगा। पुराने और नए एक्ट की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि फर्क यह है कि 1948 के कानून में निजी क्षेत्र का उल्लेख नहीं था। पहले ऊर्जा की बिक्री करने वाले और इसका उपभोग करने वाले, दोनों पर ही टैक्स लगता था, अब केवल उपभोग करने वाले को शुल्क देना होगा।पुराने एक्ट में पावर ट्रेडिंग और एक्सचेंज आफ पावर का प्रावधान नहीं थो, जबकि नए प्रस्तावित विधेयक में इनका स्पष्ट जिक्र है।
आशीष श्रीवास्तव की रिपोर्ट…….