बिहार पटना मिथिलांचल न्यूज़:- न्यूज़ बिहार ऐसा प्रदेश है जहां पिछले चार साल से हर दिन लगता है चुनाव होने ही वाले हैं। राजनीतिक सक्रियता लगातार रही है। गठबंधनों के बनने और टूटने की तमाम भविष्यवाणियां फेल होने लगी हैं। 2013 में भाजपा-जदयू गठबंधन टूटा और उसके बाद राजद-जदयू गठबंधन बना। 2017 में राजद-जदयू गठबंधन टूटा और भाजपा-जदयू गठबंधन फिर बन गया। अब 2018 में एक बार फिर नए गठबंधनों की सुगबुगाहट सी दिख रही है। तो 2019 में लोकसभा चुनाव के पहले नए गठबंधन बनेंगे?
नीतीश ने कहा वोट की चिंता नही
एनडीए में दुबारा लौटे नीतीश कुमार असहज हैं। कई मौकों पर उनकी असहजता दिखती है। भाजपा के साथ उनका पुराना गठबंधन ज्यादा सहज था और नीतीश कुमार उसमें ज्यादा सहज महसूस करते थे। ठसक से फैसले लेते थे, बलपूर्वक अपनी बात मनवाते थे। लेकिन अब नीतीश कुमार याचक की भूमिका में दिख रहे हैं। कई मौकों पर उनकी पुरानी ठसक गायब दिखी है और वो अब अपील करते दिखते हैं। ऐसे में उनकी यह असहजता और बिहार की वर्तमान राजनीतिक हलचल अगर नया गठबंधन बनाती दिखे तो विशेष आश्चर्य नहीं होगा। नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक की जयंती के अवसर पर भाजपा के हिंदूवादी चेहरे पर निशाना साधते हुए कहा कि हमारे लिए आपसी प्रेम और सामाजिक सद्भाव सबसे महत्वपूर्ण है। अब यह जरूरी नहीं कि आपके ठीक बगल में बैठा व्यक्ति भी समान सोच रखता हो। लेकिन, हमें वोटों की चिंता नहीं रहती। हम तो 18 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की भी चिंता करते हैं, जिनको वोट देने का अधिकार नहीं है। नीतीश का यह बयान उनकी एनडीए में राजनीतिक असहजता स्पष्ट करता है।
रामविलास पासवान का भी बदलता नजर आ रहा हैं रबैया
दूसरी ओर एनडीए में रामविलास पासवान के तेवर इन दिनों बदले हुए हैं। रामविलास पासवान ने कुछ मुद्दों पर परोक्ष रूप से भाजपा को घेरते नजर आए हैं। हालांकि बाद में एनडीए से अलग होने का खंडन भी रामविलास पासवान ने कर दिया है। लेकिन राजनीतिक इतिहास जानता है रामविलास पासवान के पत्ते इतनी आसानी से नहीं खुलते। माहौल देखकर फैसला लेने में रामविलास पासवान माहिर हैं। ऐसे में अगर माहौल बने तो नीतीश कुमार और रामविलास पासवान एक साथ हो जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
क्या पप्पू यादव भी अंदर ही अंदर पका रहे है कोई खिचड़ी।
पप्पू यादव व रामविलास पासवान की मुलाकात के पीछे खोजे जा रहे राजनीतिक मायने.
नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के संभावित गठबंधन में तीसरा नाम पप्पू यादव का हो सकता है। राजद के टिकट पर पप्पू ने चुनाव जीता लेकिन लालू पुत्रों के विरोध में राजद से अलग हो गए। पिछले दिनों पप्पू यादव ने नीतीश कुमार से मुलाकात भी की है। साथ ही पप्पू यादव पिछले दिनों रामविलास पासवान से भी मिले हैं। कहने को तो दोनों मुलाकातों को पप्पू यादव ने जनहित वाली बताया है लेकिन नेता मिले और राजनीति न हो, यह आम आदमी की समझ से तो बाहर है। अगर नीतीश कुमार भाजपा से अलग होते हैं तो रामविलास पासवान और पप्पू यादव के साथ उनका गठबंधन जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी ठीक है। लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी यात्राएं तो कर रहे हैं लेकिन चुनाव आने तक यादव नेता के रूप में खुद को स्थापित कर पाएंगे या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन पप्पू यादव पिछले कई महीनों से यादवों का नेता बनने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में दलित-यादव समीकरण के साथ नीतीश कुमार के सुधारवादी चेहरे के साथ कुछ मुसलमानों और अतिपिछड़ों का वोट मिल जाए तो यह गठबंधन बिहार में तीसरे मोर्चे की शुरुआत कर सकता है। हालांकि स्पष्ट तौर पर न नीतीश कुमार ने इसकी बात कही है और न ही रामविलास पासवान और पप्पू यादव ने। फिर भी राजनीतिक बयानबाजियों के बीच इसकी चर्चा गरम है।
आशीष श्रीवास्तव की रिपोर्ट