गोंड पेंटिंग की बढ़ती लोकप्रियता

    पटना बिहार मिथिलांचल न्यूज़ :-कहते हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात आज एक ऐसे ही शख्स की कहानी जिन्होंने आज इस कहावत को अपने मेहनत लगन और सब्र के बुते पर जीवंत रूप दिया हैं।
    मध्यप्रदेश के आदिवासी भज्जू श्याम की, जिन्हें गोंड कलाकृति के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को पद्मश्री से अलंकृत किया। उनके समेत 43 हस्तियों को पद्म सम्मान से नवाजा गया। इनमें मशहूर संगीतकार इलैयाराजा, हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक गुलाम मुस्तफा खान, हिंदुत्व विचारक पी. परमेश्वरन शामिल रहे। शेष हस्तियों को 2 अप्रैल को सम्मानित किया जाएगा।

    डिंडौरी के छोटे से गांव पाटनगढ़ निवासी श्याम मजदूरी के लिए भी कभी डिंडौरी के गांव-गांव भटकते थे। आर्थिक तंगी से बदहाल और परिवारिक जिम्मेदारी के चलते उन्हे काम की तलाश में महज 16 वर्ष की उम्र में ही घर छोड़ना पड़ा। काम की तलाश में भोपाल पहुंच उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड के साथ मजदूरी भी की। तमाम मुश्किलों के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। गोंड प्रधान पेंटिंग से ही ख्याति बटोरने वाले श्री श्याम अपने गृहग्राम पाटनगढ़ में गोंडी कहानी संरक्षित रखने स्कूल खोलने का सपना देख रहे हैं।
    पेंटिंग में रंग भरते बन गए मशहूर चित्रकार
    मशहूर चित्रकार जन गण सिंह श्याम ने अपने भतीजे भज्जू श्याम को काम की तलाश में यहां वहां भटकता देखकर अपने पास बुला लिया। यहां भज्जू श्याम चाचा के कहने पर उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग में रंग भरने लगे। चाचा का अपने पास बुलाना और पेंटिंग में रंग भरने के काम में लगाना भज्जू श्याम के जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। भज्जू ने बताया कि उन्हे पेंटिंग के बारे में एबीसीडी भी नहीं मालूम थी, लेकिन रंग भरते-भरते वे इस मुकाम तक पहुंच गए कि देश- विदेश में उनकी पेंटिंग की चर्चा होने लगी। चित्रकार भज्जू श्याम गोंड समाज के रीति रिवाज, गोंडी पूजा अर्चना और गोंड राजाओं के बारे में सौ से अधिक चित्र बना चुके हैं।
    दिल्ली से पेरिस और लंदन का सफर
    चाचा के मार्गदर्शन में भज्जू श्याम की प्रतिभा धीरे-धीरे निखरने लगी। उनकी प्रतिभा ने दिल्ली प्रदर्शनी से लेकर लंदन और पेरिस तक का सफर तय करा दिया। भज्जू श्याम अब तक 8 से 10 किताब चित्रकला पर लिख चुके है, जिनमें उनकी लंदन जंगल बुक पांच विदेशी भाषाओं में पब्लिश हो चुकी है। भज्जू श्याम का विवाह 22 वर्ष की उम्र में उनके गृहग्राम पाटनगढ़ में ही दीपा श्याम के साथ हुआ, जो चित्रकारी में उनकी मदद करती है। बेटा नीरज श्याम कक्षा 12 वीं में है, बेटी अंकिता 10 वीं में है। दोनों ही चित्रकारी पर रूझान रखते हैं।

    क्या हैं गोंड कलाकारी- इस कला में विशिष्ट शैली के बिंदुओं, अंडाकृतियों और मछली की खाल जैसी आकृतियों का पैटर्न देखने को मिलता है गोंड कलाकारों के काम में काल्पनिक पशु-पक्षियों और प्रकृति का अभी भी ज्यादा महत्व है लेकिन कुछ कलाकार इसमें नए तत्व भी ला रहे हैं .लगभग 1400 साल पुरानी यह कला मुगल और अंग्रेजी राज में लगभग विलुप्त हो गई थी. 1980 के दशक में यह पुनर्जीवित होनी शुरू हुई जब भोपाल के कला केंद्र भारत भवन के मुखिया प्रसिद्ध कलाकार जगदीश स्वामीनाथन ने एक गोंड कलाकार जनगढ़ सिंह श्याम को फिर से स्थापित किया.

    उनके प्रयोगात्मक काम को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. उसके बाद से इस समुदाय के कई कलाकार सामने आए और पिछले कुछ साल में उनके काम को देश-विदेश में कई कला संग्रहकर्ताओं ने खरीदा.

    इस कला के पुनर्जीवन का सबसे बड़ा सबूत शायद यह है कि उनके काम की कीमत भी बढ़ी है. 39 वर्षीय राजेंद्र श्याम ने ब्रिटेन के नॉटिंघम की न्यू आर्ट एक्सचेंज गैलरी में 2009 में और लंदन की हॉर्नीमैन आर्ट गैलरी में 2011 में प्रदर्शनी लगाई. वे कहते हैं, ‘‘गोंड कला लोकप्रिय हो गई है. ए-4 आकार की पेंटिंग अब 2,000 रु. से 5,000 रु. में बिकती है.

    दस साल पहले यह 150-200 रु. में बिक रही थी.’’ मस्ट आर्ट गैलरी की प्रवक्ता के मुताबिक, नर्मदा प्रसाद टेकम जैसे कलाकारों के काम की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है. उसी के शब्दों में, ‘‘टेकम की एक पेंटिंग की 2012 में नीलामी का न्यूनतम बेस प्राइस 60,000 रु. था. बिकी वह तिगुनी कीमत में.’’ एक दूसरे कलाकार मयंक श्याम की पेंटिंग्स की कीमतों में पिछले एक दशक में तीन गुना उछाल दिखा है. उनके बड़े कैनवस 2.5 लाख रु. तक में भी बिकते हैं.

    गोंड कला की बढ़ती कीमतों से आदिवासी कलाकारों की जीवन दशा में भी काफी सुधार आया है. भोपाल में आदिवासी कला की प्रमोटर पद्मजा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘इन कलाकारों ने अब कार, सोफा, बड़ी टीवी वगैरह खरीद लिया है. उनके बच्चे बेहतर स्कूलों में पढऩे जाते हैं.’’

    श्रीवास्तव ऑनलाइन गोंड आर्ट गैलरी चलाती हैं और गोंड कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रमोट करने का काम करती हैं. उनकी तरह की गैलरियों ने गोंड आर्ट को लोकप्रिय बनाया, तो ई-कॉमर्स के जरिए अब यह अंतरराष्ट्रीय संग्रहकर्ताओं तक पहुंच रही है. मस्ट गैलरी की प्रवक्ता के अनुसार, ‘‘अमेरिका और यूरोप से भी मांग आ रही है. गोंड कला कॉरपोरेट जगत में गिफ्ट देने के लिए भी खरीदी जा रही है.’
    मसलन, कलाकार वेकट रमन सिंह श्याम ने इस साल कनाडा की नेशनल गैलरी में सकहान इंटरनेशनल इंडिजिनस आर्ट एक्जिविशन में ‘‘स्मोकिंग ताज’’ की प्रदर्शनी लगाई. यह मुंबई के ताजमहल होटल में 26/11 के आतंकी हमले पर उनकी प्रतिक्रिया थी. यानी धीरे-धीरे ही सही, गोंड कला भी समकालीन दुनिया को दर्ज कर रही है.

    आशीष श्रीवास्तव

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