हमारी भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाती एक कोशिश ‘फूलों की होली’..

    राधा और कृष्ण फूलों से होली खेलते थे , बृज वासी इन फूलों की कोमलता और मनमोहक खुशबू से कोमल रिश्तों को मज़बूत करते और आपसी रिश्तों में मनमोहक खुशबू भरते थे !
    इस संस्कृति को बरकरार रखते हुए कई राजा महाराजाओं ने फूलों से होली मनाना जारी रखा !
    मुग़ल सम्राटों की हर पीढ़ी ने फूलों से होली मनाई और सभी को आपसी सौहार्द का संदेश दिया !
    समय बीता और इस बीतते समय के साथ फूलों की जगह कैमिकल से बने रंगों ने ले ली !



    ये कैमिकल युक्त रंग त्वचा के लिए हर प्रकार से हानिकारक होते हैं ! ये बात जानते हुए भी लोग इससे छुटकारा पाने की जगह अधिकाधिक मात्रा में इसका उपयोग करते हैं , कुछ लोगों की मानसिकता इस हद तक गिर चुकी है कि वे कोमलता और खुशबू से भरे इस त्योहार को सड़कों पर पड़े कीचड़ और जानवरों के अपशिष्ट पदार्थ से होली खेल कर होली जैसे त्योहार की पवित्रता और गरिमा को गिरा रहे हैं !
    इन्हीं सब बातों की ओर लोगों का ध्यान खींचते हुए “प्रज्ञा संस्कृति निर्माण संघ ” ने फूलों की होली का आयोजन किया , जिसमें फूलों की पंखुड़ियों से होली खेली गई !

    प्रज्ञा संस्‍कृति निर्माण संघ के प्रमुख ” अरूण कुमार श्रीवास्तव ” जिन्हें सभी ” गुरु जी ” भी कहते हैं , उनसे लिए गए साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि फूलों से होली खेलना ही हमारी भारतीय संस्कृति है , होली में गंदगी का कहीं भी स्थान नहीं,उन्होंने कहा होली को किसी ख़ास समुदाय और धर्म से जोड़ कर ना देखा जाए , होली असल में आपसी सौहार्द का त्योहार है !

    कई तरह के गायन का कार्यक्रम भी पेश किया गया , जिसमें देश के युवाओं की हिम्मत बढाते गाने थे , दर्शकों ने साथ में गुनगनाते हुए ज़ोरदार तालियों से गायकों और कार्यक्रम के प्रस्तुत कर्ताआें का मनोबल बढ़ाया !

    पटना सिटी के नुरूद्दीनगंज में प्रज्ञा संस्‍कृति निर्माण संघ द्वारा मनाई गई फूलों की ये होली पूरी तरह से मनमोहक और कामयाब रही !

    रेशमा ख़ातून
    की
    रिपोर्ट.

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