एस्सेल ग्रुप चेयर मैन, भारत मे मीडिया के टाइकून तथा राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्रा का कल जन्मदिन था आइये जानते है इनके जुड़े कुछ रोचक तथ्य….
उनका जन्म हरियाणा के हिसार जिले में 30 नवंबर 1950 को हुआ था। डॉ. चंद्रा ग्लोबल मीडिया और एंटरटेनमेंट उद्योग की बड़ी हस्तियों में से एक हैं। डॉ. चंद्रा कई समाजसेवी गतिविधियों से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने लगातार नए व्यवसायों की पहचान कर और उन्हें सफल बनाकर अपनी कुशलता और क्षमता का प्रदर्शन किया है। भारत के मीडिया टायकून के नाम से मशहूर, सुभाष चंद्रा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्हें भारत में सेटेलाइट टेलिविजन क्रांति का जनक माना जाता है। उनकी जीवन की कहानी जर्रे से आफताब बनने की कहानी जैसी है।
डॉ. सुभाष चंद्रा ने 1992 में देश का पहला सेटेलाइट टेलिविजन चैनल जी टीवी को लान्च किया जिसने टेलिविजन की दुनिया में क्रांति लाते हुए छोटे पर्दे के पूरे परिदृश्य को बदल दिया। देश में पहला समाचार चैनल जी न्यूज शुरू करने का श्रेय भी डॉ. चंद्रा के नाम है।
डॉ. चंद्रा ने सफल कारोबारी के अलावा भारत में एक समाजसेवी के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी है। डॉ. चंद्रा के एस्सेल समूह ने तालीम नामक संस्था का गठन किया है जिसका उद्देश्य डिस्टेंस एवं ओपन लर्निंग के जरिए गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध कराना है। डॉ. चंद्रा एकल ग्लोबल फाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं। फाउंडेशन ग्रामीण एवं आदिवासी भारतीय समाज से निरक्षरता उन्मूलन का काम करता है।
कैसे प्लस्टिक ट्यूब मेकर से मीडिया मुगल बन गए सुभाष चंद्रा
सुभाष चंद्रा से जब कभी भी यह पूछा जाता है कि उन्होंने किस बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की है तो आमतौर पर उनका यही जवाब होता है कि वे जगन्नाथ गोयनका विश्वविद्यालय से पढ़े हुए हैं। इस विश्वविद्यालय का नाम सुनकर आमतौर पर लोग चकरा जाते हैं, जब तक कि सुभाष चंद्रा उन्हें यह नहीं बताते कि इस तरह का कोई संस्थान नहीं है।
दरअसल, वह मजाक में अपने दादा जगन्नाथ गोयनका के सम्मान के लिए इस संस्थान का नाम लेते हैं क्योंकि उन्होंने बिजनेस की सभी बारीकियां अपने दादाजी से ही सीखी हैं जो एक कस्बे में छोटे से व्यापारी थे और आज उन्हीं की दी हुई शिक्षा की बदौलत सुभाष चंद्रा देश के मीडिया मुगल बने हुए हैं। सामान्यत इस शब्द का इस्तेमाल न्यूज कॉर्पोरेशन के प्रमुख रूपर्ट मर्डोक के सम्मान के लिए किया जाता है।
सुभाष चंद्रा के पिता जब बिजनेस को संभालने में लगे हुए थे तब वह छोटे थे और अपने दादाजी को काम करते हुए देखते थे। धीरे-धीरे वह बिजनेस की बारीकियों को सीखते रहे और काफी कम उम्र में ही उन्होंने महसूस कर लिया था कि सवाल पूछने जैसी कोई दूसरी चीज नहीं है। उनके दादाजी गांव के बाजार में जाते थे और बिना झिझक के जानकारी जुटाते थे। आज चंद्रा भी वैसा ही करते हैं और अपने कर्मचारियों से सलाह लेने में जरा भी हिचक महसूस नहीं करते हैं।
लेकिन सबसे बड़ा पाठ रिस्क लेने की कीमत को समझना था और परिणामों को स्वीकार करना था। कई बार उनके दादाजी को काफी नुकसान हुआ लेकिन वे हमेशा शांत रहते थे और कोई नहीं बता सकता था कि क्या हुआ है। चंद्रा ने उनसे भी ज्यादा बड़े रिस्क लिए। लगभग तीन दशकों के बिजनेस करियर में चंद्रा के सिर्फ कुछ भी ऐसे आइडिया होंगे जिन्होंने अच्छे परिणाम नहीं दिए, लेकिन उन्होंने अपने आपको हमेशा शांत रखा है। चंद्रा की इसी खासियत ने उन्हें काफी ख्याति दिलाई है और वह कई युवाओं के रोल मॉडल बने हुए हैं।
चंद्रा पढ़ाई के साथ भी कुछ करना चाहते थे, इसलिए मात्र 19 वर्ष की उम्र में वह हिसार में अपने परिवार के ‘खाद्यान्न’ (foodgrain) के बिजनेस में शामिल हो गए। उन्हें शुरुआत में ही सफलता मिलने लगी, जिसमें उनका वेजिटेबल ऑयल प्लांट भी शामिल थे, जिसके बाद वह पहले दिल्ली और बाद में मुंबई आ गए। चंद्रा पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने देश में सबसे पहले इस तरह की शुरुआत की थी। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने परिवार और दोस्तों के उपहास का सामना भी करना पड़ा।
वर्ष 1982 में चंद्रा ने एस्सेल पैकेजिंग लिमिटेड (EPL) शुरू की। यह पहली ऐसी भारतीय फर्म थी जो टूथपेस्ट, कॉस्मेटिक और फार्मास्युटीकल्स के लिए लैमिनेटेड प्लाटिस्ट ट्यूब्स बनाती थी। उस दौर में मल्टीनेशनल कंपनियां जैसे कोलगेट (Colgate) आदि अल्युमिनियम ट्यूब का इस्तेमाल करती थीं, चंद्रा इसमें बदलाव करना चाहते थे। लंबे समय तक चंद्रा के सहयोगियों में से एक पीसी लाहिड़ी उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि प्रोजेक्ट की शुरुआत में चंद्रा के दोस्त उन्हें धरती पर ‘सबसे बेवकूफ आदमी’ (the biggest idiot on earth) कहते थे। वे उन्हें ताना भी मारा करते थे कि आप अल्युमिनियम ट्यूब्स को कपड़े (webcloth) से रिप्लेस करने के बारे में कैसे सोच सकते हैं। तकरीबन 20 मिनट तक खरी-खोटी सुनने के बाद चंद्रा मुस्कराए और कहा, ‘हम पांच साल बाद एक-दूसरे से इस बारे में बात करेंगे।’
1980 के दशक के अंत तक अल्युमिनियम ट्यूब्स भारत में कम होने लगीं और लोग प्लास्टिक को पसंद करने लगे और चंद्रा इस बारे में अपने दोस्तों से बात कर रहे थे। इस समय EPL की प्लास्टिक ट्यूब का मार्केट शेयर 85 प्रतिशत है और यह विभिन्न देशों में निर्यात भी होती है, जिनमें मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका शामिल हैं। कंपनी ने चीन,मिस्र और जर्मनी में प्लांट लगा रखा है और इस प्रकार के बिजनेस में यह विश्व की दूसरे नंबर की कंपनी बन चुकी है।
90 के दशक के शुरुआत में देश में इकॉनमी रिफॉर्म हुआ। उस समय देश में दूरदर्शन का एकाधिकार बना हुआ था। इसी दौरान चंद्रा ने इसकी जगह लोगों को दूसरा विकल्प उपलब्ध कराने का निर्णय लिया।
हालांकि इसमें एक छोटी सी समस्या यह थी वे टेलिविजन बिजनेस के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। इसलिए चंद्रा ने वही किया जो एक बार उनके दादा ने उनके सामने किया था और वह था ज्यादा से ज्यादा सवाल करना और जानकारी जुटाना।
इस बारे में चंद्रा कहते भी हैं, ‘जब आपको पता हो कि आप किसी चीज के बारे में कुछ नहीं जानते हैं तो आपके पास सफल होने के ज्यादा मौके होते हैं।’ उन्होंने कॉनट्रैक्ट पर जुटाए कैमरामैन, प्रॉड्यूसर्स और इस बिजनेस से जुड़े लोगों के साथ करीब छह हफ्ते बिताए और उनसे बात कर काफी चीजें सीखीं। इसके बाद बिना कोई रिसर्च किए उन्होंने दो अक्टूबर 1992 को जी टेलिविजन (Zee Television) लॉन्च कर दिया। बंबई के एक कार्यालय में चार आदमियों की टीम ने मिलकर दो घंटे का इन हाउस प्रोग्राम प्रसारित करना शुरू कर दिया। इस समय देश भर के घरों में औसतन 40 चैनल उपलब्ध हैं, जिनमें‘जी’ के चैनलों की संख्या सात है और यह हिन्दी व तीन प्रादेशिक भाषाओं में चैनलों का प्रसारण कर रहा है।
अपने नाम से गोयल हटाने के पीछ सुभाष चंद्रा कहते हैं कि उन्होंने यह निर्णय देश की जाति प्रथा वाली परंपरा से दूर रहने के लिए लिया था हालांकि उनके तीनों भाई अपने-अपने बिजनेस में लगे हुए हैं और वे ‘गोयल’ सरनेम का इस्तेमाल कर रहे हैं।
एक नेशनल सर्वे के अनुसार, देश के हर घर में किसी न किसी रूप में सभी लोगों के पास‘जी’ भी मौजूद है। इसका सीधा सा कारण यह है कि प्रत्येक केबल ऑपरेटर के पास यह मौजूद होता है।
1980 के दशक में अपने इस साम्राज्य की शुरुआत के समय से ही चंद्रा ने अपनी साख का पूरा ध्यान रखा है, फिर चाहे उन्हें परिणामस्वरूप घाटा ही क्यों न उठाना पड़ा हो। चंद्रा के एक सहयोगी बताते हैं कि पश्चिम देशों से एक खरीददार (buyer) यहां सोयाबीन के लिए आया था। उसने कीमत अपने दिमाग में सेट कर रखी थी और वह उससे हटा नहीं। चंद्रा के कर्मचारी यह देखकर हैरान रह गए कि उनके बॉस उस कीमत पर मान गए हैं और इस डील से उन्हें करीब 150,000 डॉलर का नुकसान हुआ है। करीब एक साल बाद वह खरीददार फिर आया और कॉम्पिटिटर कंपनियां उससे मिलने के लिए होटल में पहुंच गईं। तीन दिन गुजर जाने के बावजूद चंद्रा ने कुछ नहीं किया। चौथे दिन उस खरीददार ने चंद्रा को अपने होटल बुलाया। चंद्रा ने उसे कम मार्जिन की कीमत बताई, तो वह भौचक्का रह गया। उसने कहा, ‘आप इस कीमत पर डिलीवर नहीं कर सकते हैं, आपको इससे कोई लाभ नहीं होगा’। इसके बाद चंद्रा को उचित कीमत पर ऑर्डर मिला जिसमें उनका पुराना नुकसान भी पूरा हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि वह कस्टमर बाद में पार्टनर बन गया।
एक बार की बात है जब चंद्रा अपने बड़े बेटे पुनीत के साथ मुंबई गए तो उनके बेटे ने मल्टीप्लेक्स मूवी थियेटर को देखकर कहा कि हमारे पास भी ऐसा एक होना चाहिए। इस पर चंद्रा ने जवाब दिया कि एक क्यों, हमारे पास पूरी चेन होगी। इसी का परिणाम है कि देश के बड़े शहरों में 40 मल्टीप्लेक्स के साथ एक वेंचर है।
अन्य बड़े उद्योगपतियों की तरह चंद्रा कभी महंगे सलाहकार नहीं रखते और न ही स्ट्रेटजी सेशन में विश्वास रखते हैं। जब भी उन्हें किसी नए बिजनेस का आइडिया आता है, वह जल्द से जल्द उसे शुरू कर देते हैं। हालांकि वह यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि उसमें न्यूनतम मानकों का पालन जरूर होना चाहिए। अपनी सैटेलाइट स्कीम के लिए भी उन्होंने यही स्ट्रेटजी अपनाई थी।
दरअसल, चंद्रा सैटेलाइट को टेलिफोन और इंटरनेट दोनों के जरिये लोगों तक पहुंचाना चाहते है। भारत की करीब 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, जहां पर अभी कंप्यूटर की उतनी पहुंच नहीं है। चंद्रा की पहुंच गांवों में भी काफी है और उन्हें इसका फायदा मिलेगा।
फिलहाल टेलिविजन इंडस्ट्री की प्रमुख कंपनी जी समूह जी टीवी, जी सिनेमा, जी प्रीमियर, जी एक्शन, जी क्लासिक, टेन स्पोर्ट्स, टेन क्रिकेट, टेन एक्सन+, जी कैफे, जी स्टूडियो, जी ट्रेंड्ज, जी खाना खजाना, जी सलाम, जी जागरण, जिंग, ईटीसी म्यूजिक, ईटीसी पंजाबी, जी मराठी, जी तेलगु, जी बांग्ला, जी कन्नडड, जी टॉकीज जैसे चैनलों का संचालन करता है। साथ ही वे अंग्रेजी दैनिक डीएनए का भी प्रकाशन करता है।