शिक्षक हैं या मल्टी टास्किंग मशीनें… लिंक पर क्लिक कर आगे पढ़ें…

    विद्या के दरबार सजल बा,अन्न-अण्डा के थाली से।
    शिक्षक के सम्मान होत बा,रोज गांव में गाली से।।
    गुरू के गरिमा गोबर भईले,खुला शौच रखवाली से
    काम मिलल बा उटपटांग,शिक्षा के अधिकारी से।
    एम डी एम के चिंता औरु,फुरसत ना तरकारी से।
    रुठ गईली विद्या के देवी,विद्यालय सरकारी से।

    इस कविता को पढ़ने के बाद आपको सरकारी स्कूलों के हालात का ठीक ठीक भान हो जायेगा। मुजफ्फरपुर के कुढ़नी के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के शौच वाले फैसले पर बवाल अब थम सा गया है.
    राज्य सरकार के शिक्षा मंत्री के ब्यान से शिक्षको को थोड़ी राहत तो जरूर मिली होगी, हालांकि उन्होंने इस बात का खंडन किया की सरकार के ओर से किसी तरह का फ़रमान शिक्षको के लिए जारी हुआ हो जिसमे वे स्कूल खुलने व छुट्टी के बाद सामाजिक जागरूकता फैलाने यानी खुले मे शौच कर रहे लोगों को समझाने का काम करेंगे, पर मंत्री जी के ब्यान ने सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया है… “स्वच्छ्ता का काम सामाजिक काम है, शिक्षक बुद्धिजीवी होते है.अगर शिक्षको को लोगों के जागरूक करने मे लगाया जाये तो वे अच्छे से लोगों को समझा सकेंगे, साथ ही अगर इसमे स्कूल के खुलने और बंद होने के बाद काम लिया जाये तो किसी को कोई परेशानी नही है”

    पर परेशानी की बात तो है महोदय… जो काम नगर निगम , सरकार के अन्य विभाग व गैर सरकारी संगठन कर सकते है उन्हें आप शिक्षकों पर क्यों थोप रहे है,

    शिक्षक छात्रों के कर्णधार होते है, उनके भविष्य निर्माता होते है, समाज का आईना होते है ये सब अब सिर्फ पुरानी बाते ही है, मास्टर जी आजकल वे सारे काम कर रहे है जिनका उनके क्षेत्र से कोई सरोकार नही, कई शिक्षको से बात करने पर मालूम हुआ की अधिकतर लोग पढ़ाना तो चाहते है पर सरकार उन्हें अन्य कामो मे इतना व्यस्त रखती है की उन्हें इस काम का मौका कम ही मिलता है जिसके लिए उन्हें बहाल किया गया था, एक मोहदय ने तो ये तक कह डाला की पाठशाला का नाम बदल कर सरकार पाकशाला ही कर दे। आज जरूरत है की सरकार इस मुद्दे पर विचार करे और आखिर राज्य में किस स्तर की शिक्षा दी जा रही है प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों मे इसपर विशेष ध्यान दें.

    ये बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ नही तो और क्या है जहाँ शिक्षा विभाग कान में तेल डालें बैठा है. बच्चे भी भर पेट खा कर पढ़ना नही चाहते है बस्ता उठा कर घर भागना चाहते है. सरकार के आला अधिकारियों को बस कागज और आँकड़े ही दुरुस्त चाहिए, चाहे जमीनी सच्चाई कुछ और हो,ऐसे में मास्टर साहब क्या करे! विचार करने योग्य तथ्यों के साथ…

    पटना से

    उधव कृष्ण

    की एक

    रिपोर्ट.

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